Friday 13 November 2015




वराहपुराण में और पद्मपुराण में ऐसा लिखा है कि पहले ब्रह्मा जी ने 60 हजार वर्ष तक तप किया फिर भी गोपियों की रज नहीं मिली. उसके बाद सतयुग के अंत में ब्रह्मा जी नेफिर तप कियाभगवान ने कहा -कि तुम क्या चाहते हो ?ब्रह्मा जी बोले- कि सब गोपियों की रज मिल जाये व माधुर्यमयी लीलाएँ देखने को मिले.भगवान ने कहा -कि वहाँ पुरुषों का प्रवेश नहीं है.ब्रह्मा जी बोले, फिर ?भगवान ने कहा -कि तुम पर्वत बन जाओ.ब्रह्मा जी बोले- कहाँ ?भगवान ने कहा - कि तुम ब्रज में चले जाओ.ब्रह्मा जी ने कहा- कि ब्रज तो बहुत बड़ा है, कहाँ जायें?भगवान बोले -कि वृषभानुपुर यानि बरसाना चले जाओ. वहाँ पर्वत बन जाना, अपने आप सब लीला मिल जायेगी व गोपियों की चरण रज भी मिल जायेगी. बरसाना – वहाँ नित्य श्री राधा रानी के चरण मिलेंगे.तब ब्रह्मा जी यहाँ आकर पर्वत बन गए.एक कथा आती है बरसाने के पर्वतों के बारे में कि जब भगवान सती अनुसुइया की परीक्षा लेने गये थे तो वहाँ उसने ब्रहमा विष्णु शिव को श्राप दिया कि तुमने बड़ा अमर्यादित व्यवहारकिया है इसीलिए जाओ पर्वत बन जाओ. तो तीनों देवता पर्वत बनगये और उनका नाम त्रिंग हुआ. जब श्री राम जी का सेतु बंधन हो रहा था तो पर्वत लाये जा रहे थे. त्रिंग को जब हुनमान जी ला रहे थे तो आकाशवाणी हुई कि अब पर्वत मत लाओ क्योंकि सेतु बंधन हो चुका है.तो जब हुनमान जी ने उसे यहाँ पर रखा तो गिरिराज जी बोले किहनुमान जी हम तुमको श्राप दे देंगे. हे वानर राज तुमने हमारा प्रभु से मिलन नहीं होने दिया. तो हुनमान जी ने प्रभु से प्रार्थना किया. एक पुराण में लिखा है कि तब राम जी ने कहा कि मैं स्वयं श्री कृष्ण के रूप में उनको अपने हाथों से धारण करूँगा जब कि औरों को तो सिर्फ चरण स्पर्श ही दूंगा.एक और जगह आता है कि स्वयं राम जी आये और उन्होंने जो त्रिंग थे, ब्रह्मा विष्णु शिव, इन तीनों को अलग - अलग करकेयहाँ स्थापित किया. 'नन्दगाँव' में शिव जी को स्थापित किया, 'नन्दीश्वर' के रूप में, और 'गोवर्धन' में विष्णु को'गिरिराज'जी के रूप में, ब्रह्मा जी यहाँ 'बरसाने'में स्थापित किये 'ब्रह्मगिरी पर्वत' के रूप में, आज हम लोग इसब्रह्मगिरी की महिमा सुन रहे हैं यहाँ चार शिखर हैं , चार गढ़ है, मानगढ़, दानगढ़, भानुगढ़, विलासगढ़. ये जितने शिखरहैं ये ब्रह्मा जी के मस्तक हैं."जय जय श्री राधे......

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