Monday 16 November 2015

कृष्ण गोवेर्धन पर्वत लीला



कृष्ण गोवेर्धन पर्वत लीला
भगवान श्री कृष्ण ने गिरिराज को उठा कर ये बताया है की गोवेर्धन पर्वत और कोई नही बल्कि साक्षात मैं ही हूँ। भगवान ने गोवर्धन पर्वत उठाया और भगवान का नाम पड़ा गिरधारी । गोवर्धन जी महाराज कौन हैं। इसके विषय में 2 प्रचलित कथाएं मिलती है। जो इस प्रकार है-
कथा 1
गर्ग संहिता के अनुसार एक बार पुलस्त्य ऋषि भ्रमण करते हुए द्रोणाच पहुंचे। वहां अनेक प्रकार के हरे-भरे वृक्षों से सुसज्जित मनोहारी गोवर्धन पर्वत को देखकर मंत्रमुग्ध हो गए। ऋषिवर ने गोवर्धनजी के पिता द्रोणाचल जी से उनके पुत्र को काशी ले जाने की इच्छा व्यक्त की। द्रोणाचल नही चाहते थे की उनके पुत्र को ऋषि लेके जाएं लेकिन पुलस्त्य के प्रताप से डरकर द्रोणाचल ने उदास मन से हामी भर दी। और गोवर्धन ने ऋषि के सामने यह शर्त रखी कि मार्ग में यदि आप मुझे कहीं भी रख देंगे, तो मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा और वहां से हिलूंगा भी नहीं।
ऋषि पुलस्त्य ने शर्त मान ली और वे अपने योगबल से गोवर्धन को अपनी दाहिनी हथेली पर रखकर काशी की ओर प्रस्थान कर गए। रास्ते में जब वे ब्रज के ऊपर से गुजर रहे थे, तब उन्हें लघुशंका लगी जब लघुशंका के लिए जा रहे थे तो उन्होंने गिरिराज पर्वत को वहीँ धरती पर रख दिया। जब निवृत होकर आये तो इन्होने गोवर्धन को उठाने का बहुत प्रयास किया, पर अपनी शर्त के अनुसार वे अपने स्थान से हिले भी नहीं।
हारकर पुलस्त्य मुनि अकेले ही काशी की ओर चल दिए, पर काशी जाने से पहले पुलस्त्य ऋषि ने गिरिराज गोवर्धन को शाप दे दिया कि दिनोंदिन तुम छोटे होते जाओगे। तुम तिल तिल घटोगे। जिस कारण यह पर्वत एक मुट्ठी रोज कम होता जा रहा है। यह उनके शाप का ही प्रभाव है कि पुराने समय की तुलना में आज गोवर्धन पर्वत का आकार बहुत छोटा हो गया है। पांच हजार साल पहले यह गोवर्धन पर्वत 30 हजार मीटर ऊंचा हुआ करता था और अब शायद 30 मीटर ही रह गया है।आज भी भक्त गण गिरिराज पर्वत की परिक्रमा करते हैं। पूरी परिक्रमा 7 कोस अर्थात लगभग 21 किलोमीटर है।
कथा 2
त्रेता युग में जब राम सेतु बंध का कार्य चल रहा था तो हनुमान जी इस पर्वत को उत्तराखंड से ला रहे थे लेकिन सेतु बन्ध का कार्य पूर्ण होने की देव वाणी को सुनकर हनुमान जी ने इस पर्वत को ब्रज में स्थापित कर दिया। इससे गोवर्धन पर्वत बहुत दुःखी हुए और उन्होंने हनुमान जी से दुखी होते हुए कहा कि, “मैं श्री राम जी की सेवा और उनके चरण स्पर्श से वंचित रह गया।”
यह वृतांत हनुमान जी ने सेतु बंध पर जाकर श्री राम जी को सुनाया तो राम जी बोले, ” द्वापर युग में मैं इस पर्वत को धारण करुंगा एवं इसे अपना स्वरूप प्रदान करुंगा।” इसलिए गिरिराज पर्वत साक्षात भगवान कृष्ण का ही सवरूप हैं। 🌻🌹💐JAI SRI GIRI GOVARDHAN KI, HARE KRISHNA! SUPRABHATAM!!!

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