श्री ब्रजमोहन दास जी, वृदावंन के बडे सिद्ध संत है . जिनका पूरा चरित्र
जीवन चमत्कारों से भरा है जोकि ब्रज में ही “सूरमा कुंज” में रहा करते थे.
क्योंकि भजन में और सदा प्रभु की लीलाओ में मस्त रहते थे. संत की अपनी
मस्ती होती है, जिसे किसी से मोह, कोई आसक्तिी नहीं है. ऐसे ही इनके जीवन
का एक बडा प्रसंग है. जोकि वृदावंन की महत्वतता को बताता है.कहते है कि जो
वृदांवन में शरीर को त्यागता है. तो उन्हें अगला जन्म श्री वृदांवन में ही
होता है. और अगर कोई मन में ये सोच ले संकल्प कर ले कि हम वृदावंन जाएगे,
और यदि रास्ते में ही मर जाए तो भी उसका अगला जन्म वृदांवन में ही होगा. पर
केवल संकल्प मात्र से उसका जन्म श्री धाम में होता हैप्रसंग १-ऐसा ही एक
प्रसंग श्री ब्रजमोहन दास जी के सम्मुख घटा. तीन मित्र थे जो युवावस्था में
थे तीनों बंग देश के थे. तीनों में बडी गहरी मित्रता थी, तीनो में से एक
बहुत सम्पन्न परिवार का था पर उसका मन श्रीधाम वृदांवन में अटका था, एक बार
संकल्प किया कि हम श्री धामही जाएगें और माता-पिता के सामने इच्छा रखी कि
आगें का जीवन हम वहीं बिताएगें, वहीं पर भजन करेंगे. पर जब वो नहीं माना तो
उसके माता-पिता ने कहा - ठीक है बेटा! जब तुम वृदांवन पहुँचोंगे तो
प्रतिदिन तुम्हें एक पाव चावल मिल जाएगें जिसे तुम पाकर खा लेना और भजन
करना.जब उसके मित्रो ने कहा -कि अगर तुम जाओगे तो हम भी तुम्हारे साथ
वृदांवन जाए, तो वो मित्र बोला - कि ठीक है पर तुम लोग क्या खाओगे? मेरे
पिता ने तो ऐसी व्यवस्था कर दी है कि मुझे प्रतिदिन एक पाव चावल मिलेगा पर
उससे हम तीनों नहीं खा पाएगें. तो उनमें से पहला मित्र बोला - कि तुम जो
चावल बनाओगे उससे जों माड निकलेगा मै उससे जीवन यापन कर लूगाँ.दूसरे ने
कहा- कि तुम जब चावल धोओगे तो उससे जो पानी निकलेगा तो उसे ही मै पी लूगाँ
ऐसी उन दोंनों की वृदावंन के प्रति उत्कुण्ठा थी उन्हें अपने खाने पीने
रहने की कोई चिंता नहीं है. तो जब ऐसी इच्छा हो तो ये साक्षात राधारानी जी
की कृपा है. तो वो तीनेां अभी किशोर अवस्था में थे.तीनों वृदांवन जाने लगे
तो मार्ग में बडा परिश्रम करना पडा और भूख प्यास से तीनों की मृत्यु हो गई
और वो वृदांवन नहीं पहुँच पाए. अब जब बहुत दिनों हो गए तीनों की कोई खबर
नहीं पहुँची तो घरवालों को बडी चिंता हुई कि उन तीनो में से किसी कि भी खबर
नहीं मिली. तो उन लडको के पिता ढूढते वृदांवन आए, पर उनका कोई पता नहीं
चला क्योंकि तीनों रास्ते में ही मर चुके थे.तो किसी ने बताया कि आप
ब्रजमोहन दास जी के पास जाओ वो बडे सिद्ध संत है. तो उनके पिता ब्रजमोहन
दास जी के पास पहुँचे और बोले - कि महाराज हमारे पुत्र कुछ समय पहले
वृदांवन के लिए घर से निकले थे पर अब तो उनकी कोई खबर नहीं है. ना वृदांवन
में ही किसी को पता है .कुछ देर तक ब्रजमोहन दास जी चुप रहे और बोले -कि आप
के तीनों बेटे यमुना जी के तट पर, परिक्रमा मार्ग में वृक्ष बनकर तपस्या
कर रहे है . वैराग्य के अनुरूप उन तीनेां को नया जन्म वृदांवन में मिला है.
जब वे श्री धामवृंदावन में आ रहे थे तभी रास्ते में ही उनकी मृत्यु हो गई
थी. और जो वृदावंन का संकल्प कर लेता है. उसका अगला जन्म चाहे पक्षु के रूप
या पक्षी के या वृक्ष के रूप मेंवृदांवन में होता है. तो आपके तीनेां बेटे
यमुना के किनारे वृक्ष है वहाँ परिक्रमा मार्ग में है. और ये भी बता दिया
कि कौन सा किसका बेटा है.बोले कि - जिसने ये कहा था कि मै चावल खाकर रहूगाँ
वो“बबूल का पेड”है जिसने ये कहा था कि मै चावल का माड ही खा लूँगा “बेर का
वृक्ष”है . जिसने ये कहा था कि चावल केधोने के बाद जो पानी बचेगा उसे ही
पी लूँगा तो वो बालक “अश्वथ का वृक्ष”है .उन्हें उन तीनो को ही वृदावंन में
जन्म मिल गया उन तीनों का उददेश्य अभी भी चल रहा है. वो अभी भी तप कर रहे
है . पर उनके पिता को यकीन नहीं हुआ तो ब्रज मोहन जी उनको यमुना के किनारे
ले गए और कहा कि देखोये बबूल का वृक्ष है ये बैर का और येअश्वथका.पर उन
लेागों के दिल में सकंल्प की कमी थी तो उनको संत की बातों पर यकीन नहीं
किया पर मुहॅ से कुछ नहीं बोले औरउसी रात को वृदांवन मे सो गए थे जब रात
में सोए,तब तीनों के तीनों वृक्ष बने बेटे सपने में आए और कहा कि पिताजी जो
सूरमा कुंज के संत है श्री ब्रजमोहन दास जी है . वो बडे महापुरूष है उनकी
दिव्य दृष्टिी है उनकी बातों पर संदेह नहीं करना वे झूठ नहीं बोलने है और
ये राधा जी की कृपा है कि हम तीनों वृदांवन में तप कर रहे है .तो अब तीनेां
को विश्वास हो गया और ब्रजमोहन दास जी से क्षमा माँगने लगे कि आप हमें माफ
कर दो हमें आपकी बात परसदेंह हो गया था सपने की पूरी बात बता दी तो ब्रज
मोहनदास जी ने कहा कि इस में आपकी कोई गलती नहीं है तीनों बडे प्रसन्न मन
से अपे घर चले गए.प्रसंग २. -एक संत ब्रजमोहनदास जी के पास आया करते थे
श्री रामहरिदास जी, उन्हेंनें पूछाँ कि बाबा लोगों के मुहॅ से हमेशा सुनते
आए कि“वृदांवन के वृक्ष को मर्म नाजाने केाय, डाल-डाल और पात-पात श्री
राधे राधे होय”तो महाराज क्या वास्तव में ये बात सत्य है . कि वृदावंन का
हर वृक्ष राधा-राधा नाम गाता हैब्रजमोहनदास जी ने कहा-क्या तुम ये सुनना या
अनुभव करना चाहते हो?तो श्री रामहरिदास जी ने कहा -कि बाबा! कौन नहीं
चाहेगा कि साक्षात अनुभव कर ले. और दर्शन भी हो जाए. आपकी कृपा हो जाए, तो
हमें तो एक साथ तीनो मिल जायेगे. तो ब्रजमोहन दास जी ने दिव्य दृष्टिी
प्रदान कर दी.और कहा -कि मन में संकल्प करो और देखो और सामने"तमाल
कावृक्ष"खडा है उसे देखा, तो रामहरिदास जी ने अपने नेत्र खोले तो क्या
देखते है कि उस तमाल के वृक्ष के हर पत्ते पर सुनहरे अक्षरों से राधे-राधे
लिखा है उस वृक्ष पर लाखों तो पत्ते है. जहाँ जिस पत्ते पर नजर जाती है. उस
परराधे राधे लिखा है तो और पत्ते हिलते तो राधे-राधे की ध्वनि निकलती है
.तो आष्चर्य का ठिकाना नहीं रहा और ब्रजमोहन दास जी के चरणों में गिर पडे
और कहा कि बाबा आपकी और राधा जी की कृपा से मैने वृदांवन के वृक्ष का मर्म
जान लिया, केाई नहीं जान सकता कि वृदांवन के वृक्ष क्या है? ये हम
अपनेशब्दों में बयान नहीं कर सकते ,ये तो केवल संत ही बता सकता है हम
साधारण दृष्टिी से देखते है. हमारी द्रष्टि मायिक है, परन्तु संत की
द्रष्टि बड़ी उच्च और दिव्य है उन्हें हर डाल, हर पात पर, राधे श्याम देखते
है
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