Monday 16 November 2015

चन्दन का श्रृंगार"


श्री अंग का ताप मिटाने ठाकुर जी
करते है चन्दन का श्रृंगार". (चन्दन उत्सव)
जब हमें गर्मी लगती है तो हम
चन्दन, कर्पूर, तेल लगाते है,जिससे हमारे शरीर का
ताप कम हो जाये. जब भगवान को गर्मी
लगती है और भक्त उन्हें चन्दन का लेप लगाते हैं
तो वे भक्तों के सभी तापों को प्रसन्नतापूर्वक हर लेते
हैं। श्रीधामवृंदावन में ठाकुर श्री राधागोविंद
मंदिर, ठाकुर श्रीराधा गोपीनाथ मंदिर, ठाकुर
श्रीराधा मदनमोहन मंदिर, ठाकुर
श्रीराधादामोदर मंदिर, ठाकुर श्रीराधारमण
मंदिर, ठाकुर श्रीराधाविनोद गोकुलानंद मंदिर नामक सप्त
देवालयों की अत्यधिक मान्यता है। माध्वगौडेश्वर
संप्रदाय के इन सभी मंदिरों में प्राचीन काल
से "अक्षय-तृतीया" के दिन ठाकुरजी के
श्री विग्रहों के सर्वाग का कर्पूर मिश्रित चंदन से लेप
करके उनका चंदन के ही द्वारा अत्यंत नयनाभिराम व
चित्ताकर्षक श्रृंगार किया जाता है।
इस श्रृंगार में ठाकुर जी की पोशाक, उनके
अलंकार एवं अन्य साज-सज्जा तक चंदन की
ही हुआ करती है। साथ
ही ठाकुर जी को रायबेल के श्वेत पुष्पों
की महकती हुई माला भी
धारण कराई जाती है। यह श्रृंगार देखते
ही बनता है। साथ ही ठाकुर
जी के चारों ओर खस की टटिया लगाकर
उनका विभिन्न शीतल पदार्थो से भोग लगाया जाता है।
इसके अलावा राग वसंत की प्रधानता वाले भजन, पद,
रसिया एवं लोक गीतों आदि का गायन होता है।
भक्त श्रद्धालुओं को यह दर्शन सायंकाल होते हैं। इन
आकर्षक दर्शनों के लिए इतनी अधिक
भीड उमडती है कि समूचा वृंदावन
श्रद्धालुओं से भर जाता है। इस महोत्सव को "चंदन दर्शन" ,
"चंदनोत्सव", "चंदन यात्रा" आदि नाम दिए गए हैं। वृंदावन के
विश्व विख्यात ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर में
भी अक्षय-तृतीया के दिन ठाकुर
जी को केवल लंगोटी धारण कराके और
उनके चरणों के सम्मुख चंदन का गोला रख कर के वर्ष भर में
केवल इसी दिन उनके चरणों के दर्शन कराए जाते हैं।
दर्शनार्थियोंकी सुविधा के लिए यह दर्शन प्रात:व सायं
दोनों समय होते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन
उनके दर्शन करने से बद्रीनाथ स्थित ठाकुर विग्रह
के दर्शन का फल मिलता है। चंदन दर्शन के सूत्रधार कलियुग
पावनावतार चैतन्य महाप्रभु के दादा गुरु माधवेंद्रपुरी
गोस्वामी थे। वह कृष्ण प्रेम भक्ति के प्रथम
अवतारी स्वरूप माने जाते हैं।
चन्दन उत्सव कथा
एक बार माधवेंद्रपुरी जी व्रज मंडल
जतीपुरा(गोवर्धन) में आये, जब वे रात में सोये तो गोपाल
जी उनके स्वप्न ने आये, और बोले -पुरी!
देखो में इस कुंज में पड़ा हूँ, यहाँ सर्दी,
गर्मी, वरसात, में बहुत दुःख पता हूँ. तुम इस कुंज
से मुझे बाहर निकालो और गिरिराज जी पर मुझे स्थापित
करो? जब माधवेंद्रपुरी जी सुबह उठे तो
उन्होंने व्रज के कुछ ग्वालो को लेकर उस कुंज में आये और
कुंज को ध्यान से खोदा, तो मिट्टी में एक
श्री विग्रह पड़ा था, उसे लेकर स्नान अभिषेक करके
पुरि जी ने स्थापित कर दिया.
एक दिन फिर श्री गोपाल जी स्वप्न में
आये और माधवेंद्रपुरी से कहा - कि
भीषण ग्रीष्म की तपिश से
मेरा शरीर तप रहा है। तुम जगन्नाथपुरी
स्थित मलयाचल से वहां का चंदन लाकर मेरे शरीर पर
लेप करो। माधवेंद्रपुरी गोस्वामी चंदन लेने
हेतु मलयाचल चले गए।रास्ते में रेमूणाय नामक ग्राम
आया, वहां "ठाकुर गोपीनाथ" का मंदिर था। मंदिर के
दर्शन कर फिर वे मलयाचल से अत्यधिक मात्रा में चन्दन लेकर
लौट रहे थे, तब वे रात्रि विश्राम के लिए फिर रेमूणाय ग्राम में
ठहर गए।
रात्रि में श्रीनाथ जी ने उन्हें यह स्वप्न
दिया कि तुम जो चन्दन लाए हो, उसका यही
रेमूणाय गोपीनाथ के शरीर पर
ही लेप करवा दो। मेरे अंग में लेपन करने से उनके
श्री अंग का ताप भी दूर हो जाएगा क्योंकि
ठाकुर गोपीनाथ और मैं एक ही हूं।
माधवेंद्रपुरी ने ऐसा ही किया। यह घटना
अक्षय तृतीया के दिन की ही
है। इस प्रकार चंदन-यात्रा की सेवा का समर्पण
क्रम सर्वप्रथम जगन्नाथपुरी स्थित ठाकुर जगन्नाथ
मंदिर में अक्षय-तृतीया के दिन प्रारम्भ हुआ। वहां
यह महोत्सव "वैशाख शुक्ल तृतीया से ज्येष्ठ
पूर्णिमा" की जल यात्रा तक पूरे एक
महीने अत्यंत श्रद्धा व धूमधाम के साथ मनाया जाता
है।
उक्त घटना से प्रेरणा लेकर वृंदावन में चंदन यात्रा की
विशिष्ट सेवा की परम्परा का शुभारंभ
श्रीलजीव गोस्वामी ने
अक्षय-तृतीया के दिन यहां के समस्त सप्त देवालयों
में कराया। यह सेवा अब यहां वृहद् रूप से होती
है। एक दिन की यह ठाकुर सेवा अत्यंत समय साध्य
व श्रम साध्य है। समस्त सप्त देवालयों के गोस्वामी
व भक्त-श्रद्धालु अक्षय-तृतीया के कई माह पूर्व
से अपने-अपने मंदिर प्रांगणों में बडे-बडे पत्थरों पर चंदन घिसने
का कार्य इस भाव से करते हैं कि प्रभु उनकी इस
सेवा को अवश्य ही स्वीकार करेंगे।
अक्षय-तृतीया के एक दिन पूर्व घिसे हुए चंदन को
एक जगह एकत्रित कर पुन:और अधिक महीन
पीसा जाता है ताकि ठाकुर विग्रहोंके किसी
भी श्रीअंग को किसी प्रकार
का कष्ट न हो।
अक्षय-तृतीया के दिन प्रात:महीन चंदन
में यमुना जल, गुलाब जल, इत्र, कर्पूर का पाउडर व केसर आदि
का मिश्रण गोस्वामी गणों द्वारा किया जाता है।
तत्पश्चात उक्त मंदिरों के सेवायतों द्वारा ठाकुर विग्रहोंके
श्री अंगों पर इस मिश्रण का लेप किया जाता है। इस
लेपन के अंतर्गत ठाकुरजीके शीश मुकुट,
पोशाक, वंशी, लकुटि,बाजूवंद,कंधनी,पटका
आदि चंदन से ही निर्मित कर कलात्मक रूप से
सुशोभित किए जाते हैं।
जय श्री राधै ....

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