एक समय नन्दबाबा
गोप, गोपी और गऊओं
के साथ खेलन वन पर
निवास कर रहे थे।
वृषभानु बाबा भी
अपने पूरे परिवार और
गोधन के साथ इधर ही
कहीं निवास कर रहे थे।
'जटिला और कुटिला'
दोनों ही अपने को ब्रज
में पतिव्रता नारी समझती
थीं।
ऐसा देखकर एक
दिन कृष्ण ने अस्वस्थ
होने का बहाना किया।
उन्होंने इस प्रकार
दिखलाया कि मानो
उनके प्राण निकल रहे
हों।
यशोदा जी ने वैद्यों
तथा मन्त्रज्ञ ब्राह्मणों
को बुलवाया ,
किन्तु वे कुछ भी
नहीं कर सके।
अंत में योगमाया
पूर्णिमा जी वहाँ
उपस्थित हुईं।
उन्होंने कहा-यदि
कोई पतिव्रता नारी मेरे
दिये हुए सैंकड़ों छिद्रों
से युक्त इस घड़े में यमुना
का जल भर लाये
और मैं मन्त्रद्वारा कृष्ण
का अभिषेक कर दूँ तो
कन्हैया अभी स्वस्थ हो
सकता है, अन्यथा बचना
असंभव है।
यशोदाजी ने जटिला-
कुटिला को बुलवाया
और उनसे उस विशेष
घड़े में यमुना जल लाने
के लिए अनुरोध किया।
बारी-बारी से वे दोनों
यमुना के घाट पर जल
भरने के लिए गई,
किन्तु जल की एक
बूंद भी उस घड़े में
लाने में असमर्थ रहीं।
वे यमुना घाट पर उक्त
कलश को रखकर उधर-
से-उधर ही घर लौट गयीं।
अब योगमाया पूर्णिमाजी
के परामर्श से मैया यशोदा
जी ने राधिका से सहस्त्र
छिद्रयुक्त उस घड़े में यमुना
जल लाने के लिए अनुरोध
किया।
उनके बार-बार अनुरोध
करने पर राधिका उस
सहस्त्र छिद्रयुक्त घड़े में
यमुना जल भरकर ले
आईं।
एक बूंद जल भी उस
घड़े में से नीचे नहीं गिरा।
पूर्णमासी जी ने उस जल
से कृष्ण का अभिषेक
किया।
अभिषेक करते ही कृष्ण
सम्पूर्णरूप से स्वस्थ हो
गये।
सारे ब्रजवासी इस
अद्भुत घटना को देखकर
विस्मित हो गये।
फिर तो सर्वत्र ही राधिका
जी के पातिव्रत्य धर्म की
प्रशंसा होने लगी।
**********************
**** smile emoticon राधे राधे smile emoticon ****
गोप, गोपी और गऊओं
के साथ खेलन वन पर
निवास कर रहे थे।
वृषभानु बाबा भी
अपने पूरे परिवार और
गोधन के साथ इधर ही
कहीं निवास कर रहे थे।
'जटिला और कुटिला'
दोनों ही अपने को ब्रज
में पतिव्रता नारी समझती
थीं।
ऐसा देखकर एक
दिन कृष्ण ने अस्वस्थ
होने का बहाना किया।
उन्होंने इस प्रकार
दिखलाया कि मानो
उनके प्राण निकल रहे
हों।
यशोदा जी ने वैद्यों
तथा मन्त्रज्ञ ब्राह्मणों
को बुलवाया ,
किन्तु वे कुछ भी
नहीं कर सके।
अंत में योगमाया
पूर्णिमा जी वहाँ
उपस्थित हुईं।
उन्होंने कहा-यदि
कोई पतिव्रता नारी मेरे
दिये हुए सैंकड़ों छिद्रों
से युक्त इस घड़े में यमुना
का जल भर लाये
और मैं मन्त्रद्वारा कृष्ण
का अभिषेक कर दूँ तो
कन्हैया अभी स्वस्थ हो
सकता है, अन्यथा बचना
असंभव है।
यशोदाजी ने जटिला-
कुटिला को बुलवाया
और उनसे उस विशेष
घड़े में यमुना जल लाने
के लिए अनुरोध किया।
बारी-बारी से वे दोनों
यमुना के घाट पर जल
भरने के लिए गई,
किन्तु जल की एक
बूंद भी उस घड़े में
लाने में असमर्थ रहीं।
वे यमुना घाट पर उक्त
कलश को रखकर उधर-
से-उधर ही घर लौट गयीं।
अब योगमाया पूर्णिमाजी
के परामर्श से मैया यशोदा
जी ने राधिका से सहस्त्र
छिद्रयुक्त उस घड़े में यमुना
जल लाने के लिए अनुरोध
किया।
उनके बार-बार अनुरोध
करने पर राधिका उस
सहस्त्र छिद्रयुक्त घड़े में
यमुना जल भरकर ले
आईं।
एक बूंद जल भी उस
घड़े में से नीचे नहीं गिरा।
पूर्णमासी जी ने उस जल
से कृष्ण का अभिषेक
किया।
अभिषेक करते ही कृष्ण
सम्पूर्णरूप से स्वस्थ हो
गये।
सारे ब्रजवासी इस
अद्भुत घटना को देखकर
विस्मित हो गये।
फिर तो सर्वत्र ही राधिका
जी के पातिव्रत्य धर्म की
प्रशंसा होने लगी।
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