Friday 30 October 2015

रासक्रीडा

भगवान श्रीकृष्ण कि सेविका
गोपियाँ एक-दूसरे की बाहँ-में-बाहँ डाले खड़ी
थी.उन के साथ यमुनाजी के पुलिन पर भगवान ने
अपनी रसमयी रासक्रीडा प्रारंभ की.
रास लीला में स्वयं भगवान शंकर आये रास के बाहर
भगवान की सखी ललिता जी ने उन्हें युगल मंत्र का
उपदेश दिया और गोपी का श्रंगार कराया फिर
रास में प्रवेश कराया. सम्पूर्ण योगो के स्वामी
भगवान श्रीकृष्ण दो-दो गोपियों के बीच में प्रकट
हो गये और उनके गले में अपने हाथ डाल दिए. इस
प्रकार एक गोपी और एक कृष्ण यही क्रम था.
गोपियाँ यही अनुभव कर रही थी कि हमारे प्यारे
तो हमारे ही पास है,
उस समय आकाश में शत-शत विमानों की भीड़ लग
गयी. रासमंडल में सभी गोपियाँ अपने प्रियतम
श्यामसुन्दर के साथ नृत्य करने लगी. उनकी कलाईयो
के कंगन पैरों के पायजेब और करधनी के छोटे-छोटे घुँघुरू
एक साथ बज उठे. उस यमुनाजी की रमणरेती पर
ब्रजसुन्दरियो के बीच में भगवान श्रीकृष्ण की बड़ी
अनोखी शोभा हुई ऐसा जान पडता था मानो
अगणित पीली-पीली दमकती हुई सुवर्ण-मणियो के
बीच में, ज्योतिर्मयी नीलमणि चमक रही हो.
नृत्य के समय गोपियाँ तरह-तरह से ठुमक-ठुमककर अपने
पाँव कभी आगे बढाती, और कभी पीछे हटा लेती,
कभी गति के अनुसार धीरे-धीरे पाँव रखती, तो कभी
बड़े वेग से, कभी चाक की तरह घूम जाती, कभी अपने
हाथ उठ-उठाकर भाव बताती तो कभी विभिन्न
प्रकार से उन्हें चमकाती. कानो के कुंडल हिल-
हिलकर कपोलों पर आ जाते थे नाचने के परिश्रम से
उनके मुहँ पर पसीने की बूंदें झलकने से उनके मुख की
छटा निराली ही हो गयी थी केशो की चोटियाँ
कुछ ढीली पड़ गयी थी उनमे गुंथे हुए फूल गिरते जा रहे
थे भगवान के अंगों के संस्पर्श से गोपियों की
इन्द्रियाँ प्रेम और आनंद से विहल हो गयी उनके केश
बिखर गये, गहने अस्त-व्यस्त हो गये. भगवान ने उनके
गलों को अपने भुजपाश में बाँध रखा था. उस समय
ऐसा जान पडता था मानो बहुत से श्रीकृष्ण तो
साँवले-साँवले मेघ मंडल है और उनके बीच-बीच में
चमकती हुई गोरी गोपियाँ बिजली है.
एक सखी श्रीकृष्ण से सटकर नाचते-नाचते ऊँचे स्वर में
मधुर गान कर रही थी कोई गोपी भगवान के स्वर में
स्वर मिलकर गाने लगी एक सखी ने ध्रुपदराग में
गाया.भगवान ने वाह-वाह कहकर उसकी प्रशंसा
की. अब भगवान ने अपनी थकान दूर करने के लिए
गोपियों के साथ जलक्रीड़ा करने के उद्देश्य से यमुना
के जल में प्रवेश किया.यमुना जल में गोपियों ने प्रेम
भरी चितवन से भगवान की ओर देख-देखकर हँस-हँसकर
उन पर इधर-उधर से जल की खूब बौछारे डाली. जल
उलीच-उलीचकर उन्हें खूब नहलाया.
इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ब्रजयुवतियो ओर भौरों
की भीड़ से घिरे हुए यमुना तट के उपवन में गये. वह
बड़ा ही रमणीय था उसके चारो ओर जल और स्थल मे
बड़ी सुन्दर सुगंधवाले फूल खिले हुए थे. भगवान ने
गोपियों के साथ उस उपवन में विहार किया. ब्रह्मा
की रात्रि के बराबर वह रात्रि बीत गयी.
ब्राह्ममुहूर्त आया, यधपि गोपियों की इच्छा अपने
घर लौटने की नहीं थी, फिर भी भगवान श्रीकृष्ण
की आज्ञा से वे अपने-अपने घर चली गयी .

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