Tuesday 27 October 2015

जय श्री कृष्णा

इच्छा पाप को प्रेरित करती है| जब पाप
हो जाए तो प्रायश्चित करना चाहिए| सबसे
श्रेष्ठ प्रायश्चित भगवान का नाम है| प्रभु के
नाम
स्मरण से बुद्धि शुद्ध होती है| शुद्ध बुद्धि पाप
के
लिये प्रेरित नहीं करती, फलतः जीवन
निष्पाप हो
जाता है| नाम की महिमा दर्शाता हुआ एक
उदाहरण है:---- अजामिल ब्राह्मण परिवार में
पैदा
हुआ| वह सदाचारी ब्राह्मण था, लेकिन वेश्या
को
देखा तो उसे अपने घर ले आया और उसका पतन
होने
लगा और अंत में वह लुटेरा बन गया, लेकिन साधुओं
के
कहने से अजामिल ने अपने बेटे का नाम
“ नारायण” रखा| अजामिल ने मरते समय अपने
पुत्र
“ नारायण” को पुकारा परंतु अंत समय में
नारायण
नाम पुकारने से वह भगवद्धाम का अधिकारी
बन
गया|
शिक्षा- जैसे कि आग पर पैर रखने से पैर जलेगा
ही
चाहे पैर जान कर रखा हो या अ न जाने में|
इसी
प्रकार भगवान का नाम चाहे किसी भी भाव
से पुकारो, जानकर या अनजाने में, प्रभु का नाम
अपना काम करेगा ही| भगवान की कृपा तो
बरसती ही रह्ती है| भगवान ज्ञानियों के
लिये पास भी हैं लेकिन अज्ञानियों के लिये दूर
भी हैं| भगवान सबके ह्रदय में रह्ते हैं लेकिन
भक्त
के ह्रदय में तो विशिष्ठ कृपा के साथ सक्रिय
रहते हैं क्योंकि भक्त के अज्ञान रूपी अन्धकार
को मिटा कर ज्ञान रूपी दीपक जला कर भक्त
के ह्रदय में प्रकाश फैला देते हैं| बाकी सबके
ह्रदय
में केवल द्रष्टा बन कर रहते हैं जिसे हम
सामान्य
कृपा कह सकते हैं|
प्रश्न : आजकल लोग स्वाभाविक प्रश्न करते हैं
कि
यदि भाव न हो तो नाम लेने से क्या फायदा?
किंतु “ मानस ” में लिखा है कि “”भाय कुभाय
अनख आलसहु, नाम जपत मंगल दिसि
दसहु ” | ” बिना भाव के भी नाम जपने से मंगल
होता है| हमारे स्नानगृह में दो टोंटी लगी
हों, एक
टोंटी से ज्यादा पानी गिरता हो और दूसरी
टोंटी से कम पानी गिरता हो, दोनों टोंटियों
के
नीचे बाल्टी रखी हो| अब विचार करें- तेज
धार
वाली टोंटी के नीचे की बाल्टी जल्दी भरेगी,
कम
धार वाली टोंटी के नीचे रखी बाल्टी भरेगी
तो
जरूर, किंतु देरी से भरेगी| ऐसे ही खूब भाव
सहित
नाम लेते रहेंगे तो शीघ्र कल्याण होगा, बिना
भाव
के भी नाम लेते रहेंगे तो कम धार वाली बाल्टी
की
तरह कल्याण तो होगा| थोड़ा समय जरूर
लगेगा|
अतः भगवद् प्राप्ति के लिये प्रयत्न करते रहो,
जल्दी या देर भले ही हो भगवान अवश्य मिलेंगे|
भगवान्नाम में अपार सामर्थ्य है|
श्रीमदभागवत
में लिखा है कि भगवन्नाम से भगवान की भी
रक्षा होती है तो फिर हमारी रक्षा क्यों
नही होगी| यदि अनजाने में पाप हो भी जाए
तो भगवन्नाम लेते रहने से बुद्धि पाप की तरफ
अग्रसर नहीं होती|

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