Tuesday 27 October 2015

बाँके बिहारी मंदिर

वृंदावन में बाँकेबिहारी जी मंदिर में बिहारी जी
की काले रंग की प्रतिमा है। इस प्रतिमा के विषय
में मान्यता है कि इस प्रतिमा में साक्षात्
श्रीकृष्ण और राधाजी समाहित हैं , इसलिए इनके
दर्शन मात्र से राधा-कृष्ण के दर्शन के फल की प्राप्ति होती है । इस प्रतिमा के प्रकट होने की
कथा और लीला बड़ी ही रोचक और अद्भुत है,
इसलिए हर वर्ष मार्गशीर्ष मास की पंचमी तिथि को
बाँकेबिहारी मंदिर में बाँकेबिहारी प्रकटोत्सव
मनाया जाता है।
बाँकेबिहारी जी के प्रकट होने की कथा-संगीत
सम्राट तानसेन के गुरु स्वामी हरिदास जी भगवान
श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे। वृंदावन में
स्थित श्रीकृष्ण की रास-स्थली निधिवन में
बैठकर भगवान को अपने संगीत से रिझाया करते थे।
भगवान की भक्ति में डूबकर हरिदास जी जब भी
गाने बैठते तो प्रभु में ही लीन हो जाते। इनकी
भक्ति और गायन से रीझकर भगवान श्रीकृष्ण
इनके सामने आ गये। हरिदास जी मंत्रमुग्ध होकर
श्रीकृष्ण को दुलार करने लगे। एक दिन इनके एक
शिष्य ने कहा कि आप अकेले ही श्रीकृष्ण का
दर्शन लाभ पाते हैं, हमें भी साँवरे सलोने का
दर्शन करवाइये। इसके बाद हरिदास जी श्रीकृष्ण
की भक्ति में डूबकर भजन गाने लगे। राधा-कृष्ण
की युगल जोड़ी प्रकट हुई और अचानक हरिदास के
स्वर में बदलाव आ गया और गाने लगे-
भाई री सहज जोरी प्रकट भई,
जुरंग की गौर स्याम घन दामिनी जैसे।
प्रथम है हुती अब हूँ आगे हूँ रहि है न टरि है
तैसे।
अंग-अंग की उजकाई सुघराई चतुराई सुंदरता ऐसे।
श्री हरिदास के स्वामी श्यामा पुंज बिहारी सम
वैसे वैसे।
श्रीकृष्ण और राधाजी ने हरिदास के पास रहने की
इच्छा प्रकट की। हरिदास जी ने कृष्णजी से कहा
कि प्रभु मैं तो संत हूँ। आपको लंगोट पहना
दूँगा लेकिन माता को नित्य आभूषण कहाँ से
लाकर दूँगा। भक्त की बात सुनकर श्रीकृष्ण
मुस्कराए और राधा-कृष्ण की युगल ओजोड़ी
एकाकार होकर एक विग्रह के रूप में प्रकट हुई।
हरिदास जी ने इस विग्रह को ‘बाँकेबिहारी’ नाम
दिया। बाँके बिहारी मंदिर में इसी विग्रह के दर्शन
होते हैं। बाँके बिहारी के विग्रह में राधा-
कृष्ण दोनों ही समाए हुए हैं, जो भी श्रीकृष्ण
के इस विग्रह का दर्शन करता है, उसकी
मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। —

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