Tuesday, 27 October 2015

ब्रजचौरासी
🌿परिचय🌿
सच्चिदानन्द विग्रह स्वयं भगवान् व्रजेन्द्रनन्दन श्रीकृष्ण और उनकी स्वरूप शक्ति की मूर्तविग्रहा अखण्ड रस वलल्भा श्रीराधाजी की मधुरातिमधुर केलिस्थली भौम- वृन्दावन धाम की अचिन्त्य महिमा है। अप्रकट-धाम की अन्तर्धान शक्ति के द्वारा प्राकृत पृथ्वी को स्पर्श किये बिना यह उसके दृश्यमान प्रकाश रूप में जगत् में विद्यमान् है। इसके दिव्य वैभव का दर्शन प्राकृत देहधारी जन-साधारण नहीं कर सकता।

व्रजगोपियों का कहना है-

वृन्दावनं सखि भुवो वितनोति कीर्तिम्
यह श्रीवृन्दावन भूमण्डल की कीर्ति-यश का वृद्धिकारी है- उस समय की बात का क्या कहना, वर्तमान काल में भी समस्त भगवल्लीला-स्थलियों, पुरियों एवं तीर्थों से असमोधर्व महिमामण्डित है श्रीवृन्दावन धाम। प्रेमावतार करुणा वरुणालय भगवत् श्रीकृष्णचैतन्यदेव ने अपने प्रिय पार्षद श्रीश्रीरूपसनातनादि गोस्वामीवृन्द को गौड़देश से भेजकर श्रीवृन्दावन की लुप्तप्रा़य लीलास्थलियों एवम् तीर्थों को प्रकाशित कराया, ताकि श्रीश्रीराधाकृष्ण के भागवतीय लीला-रहस्य के साथ व्रजभूमि की अचिन्त्य महिमा-माधुरी का आस्वादन कर रसिकजन आत्म-प्रसन्नता प्राप्त कर जीवन को सार्थक कर सकें।
श्रीव्रजधाम के प्राचीन देवालय, आश्रम, कुण्ड-कुंजादि, श्रीदेवविग्रहों का प्रमाणिक तथा ऐतिहासिक परिचय, श्रीविग्रहों के प्रकटकर्ताओं का पावन जीवनवृत्त तथा उनकी सेवा परिपाटी, प्रतिष्ठा, सेवा आराधना आदि की जानकारी आज के युग की सहज माँग है।
श्रीश्यामदास हकीम जी द्वारा रचित ग्रन्थ 'श्रीव्रज दर्शन' व 'श्रीव्रजधाम' के माध्यम से यह जानकारी हम सब श्रीब्रजचौरासी की यात्रा परिक्रमा के रूप में कल से श्रीधाम वृन्दावन के ठाकुर श्रीराधागोविन्द देव जू के मन्दिर से शुरुआत करेंगे, इसी आशा के साथ कि इस मानसिक ब्रज यात्रा से हमें वास्तविक ब्रज की यात्रा का आनन्द प्राप्त हो सके।

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