Saturday 24 October 2015

चरण पहाडी

चरण पहाड़ी - जहाँ वंशी ध्वनि सुनकर पत्थर
भी पिघल गए
जब भगवान छिपा छिपी का खेल खेलते थे तब
श्रीकृष्ण इस कन्दरा में प्रवेश कर गए उस कन्दरा
का नाम लुकलुकी कन्दरा है फिर कृष्ण
पहाड़ी के ऊपर प्रकट हुए और वहीं से उन्होंने
मधुर वंशीध्वनि की. वंशीध्वनि सुनकर
सखियों का ध्यान टूट गया और उन्होंने
पहाड़ी के ऊपर प्रियतम को वंशी बजाते हुए
देखा, वे दौड़कर वहाँ पर पहुँची और बड़ी
आतुरता के साथ कृष्ण से मिलीं.
वंशीध्वनि से पर्वत पिघल जाने के कारण उसमें
श्रीकृष्ण के चरण चिह्न उभर आये. आज भी वे चरण–
चिह्न स्पष्ट रूप में दर्शनीय हैं. पास में उसी
पहाड़ी पर जहाँ बछडे़ चर रहे थे और सखा खेल रहे
थे, उसके पत्थर भी पिघल गये जिस पर उन बछड़ों
और सखाओं के चरण– चिह्न अंकित हो गये, जो
पाँच हज़ार वर्ष बाद आज भी स्पष्ट रूप से
दर्शनीय हैं.लुक–लुकी कुण्ड में जल–क्रीड़ा हुई
थी. इसलिए इसे जल–क्रीड़ा कुण्ड भी कहते हैं.
विहृल कुण्ड- चरणपहाड़ी के पास ही विहृल
कुण्ड और पञ्चसखा कुण्ड है. यहाँ पर कृष्ण की
मुरली ध्वनि को सुनकर गोपियाँ प्रेम में
विहृल हो गई थी. इसलिए वह स्थान विहृल
कुण्ड के नाम से प्रसिद्ध हुआ. पञ्च सखा कुण्डों के
नाम रग्ङीला, छबीला, जकीला, मतीला
और दतीला कुण्ड हैं. ये सब अग्रावली ग्राम के
पास विद्यमान हैं.
वृन्दा देवी : चरण पहाड़ी से थोड़ी ही दूर
वृन्दा देवी का मन्दिर है. श्री कृष्ण की
प्रकट लीला के समय वृन्दा देवी यहाँ
निवास किया करती थीं. यहीं से वे संकेत
आदि कुंजों में श्री राधा-कृष्ण का मिलन
करातीं थीं. यहाँ वृन्दा देवी कुण्ड भी है.
वृन्दा देवी ही श्रीराधा-कृष्ण की
लीलाओं की अधिष्ठात्री वन देवी हैं.
वृन्दा देवी की कृपा से ही श्री राधा-
कृष्ण की लीलाओं में प्रवेश लिया जा सकता
है.
!! जय जय श्री राधे !

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