Wednesday 28 October 2015

वृंदावन सी गली कहाँ



 गलीयाँ तो हर जगह है जग में, पर वृंदावन सी गली कहाँ।
शोर तो है हर ओर ही जग में, पर राधे राधे को शोर कहाँ।
इस जग में ब्रज की ही गलीयाँ जहाँ राधे राधे होती हैं,
कैलाश तो क्या बैकुंठ में भी ऐसी गलियाँ नहीं दीखती हैं।
धूल तो है हर जगह ही जग में पर ब्रज की धूल सी धूल
कहाँ,
जहाँ स्यामा स्याम करें क्रिड़ा वह जमुना जी सी कूल कहाँ।
वह ताकत क्या कहीं और के रज में जो दील में प्रेम
जगा देवें,
ब्रजमोहन भी जिसे सिस धरे क्या तुल भला उसकी होवें।।
।। हे मेरे बाँके बिहारी जी ।। हे मेरे वृंदावन धाम।।

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