Wednesday 21 October 2015

Krishana Damodar Nam Rahasya katha (कृष्ण दामोदर नाम का रहस्य कथा)



Krishana Damodar Nam Rahasya katha (कृष्ण दामोदर नाम का रहस्य कथा)

दामोदर नाम का अर्थ है, दाम तथा उदर ।अर्थात दाम यानि रस्सी तथा उदर का अर्थ है पेट।पेट को रस्सी से बाँधना।कन्हैया को ओखल से मैया का बाँधना ।

एक दिन यशोदा माँ मन ही मन कान्हा का ध्यान करते हुए अपने हाथों से माखन मथानी से निकाल रही थी। कान्हा खेलते हुए अाते हैं और मैया की गोद में बैठकर दूध पीने लगते हैं।मैया भी प्यार से कान्हा के सिर पर अपना हाथ फेरती हुई दूध पिलाने लगती हैं।उसी समय पद्मगन्धा गाय का दूध जो चुल्हे पर यशोदा मैया ने चढ़ा रखा था, उफन कर गिरने लगता है। दूध को गिरता देख मैया कान्हा को गोद से उतार देती हैं और दूध की मटकी चुल्हे से उतारने चली जाती हैं।पद्मगन्धा गाय का दूध मैया कान्हा के लिए रखती हैं क्योंकि कान्हा को पसन्द है।परन्तु कान्हा को ये भी स्वीकार नहीं, कि मैया मुझे गोद से उतार कर कोई अन्य काम करें। कान्हा को क्रोध आ गया और उन्होंने दूध की मटकी को पत्थर मारकर तोड़ दिया और मैया से डरकर भाग खड़े हुए।मैया मटकी का दूध बहता देख परेशान हो गईं और उन्हें भी क्रोध आ गया। अब क्या था ,मैया हाथ में छड़ी लेकर कान्हा के पीछे-पीछे भागी।मैया ने कहा ,भागकर कहाँ जायेगा कान्हा , आज मैं तुझे सजा देकर रहूँगी।कान्हा तू बहुत बिगड़ गया है।आगे -आगे कान्हा पीछे-पीछे मैया,परन्तु कान्हा कहाँ हाथ आने वाले थे।थककर मैया हार मान गई, और हाथ से छड़ी फेंक दिया और उदास होकर बैठ गईं।यशोदा माँ ने ज्योंही हार माना, कान्हैया धीरे से आकर मैया के पास आकर खड़े हो गये और मैया को मनाने लगे।

मैया गोपियों के उलाहनें से भी दुखी थी , और आज तो कान्हा ने हद ही कर दिया था। मैया ने कान्हा का हाथ पकड़ा ,और कहने लगी, तू बड़ी मुश्किल से पकड़ में आया है।आज मैं तुझे सजा दूँगी, और रस्सी लाकर ओखल से कान्हा को बाँधने लगी । मैंया को यह करना अच्छा नहीं लग रहा था , इसलिये स्वयं भी रो रही थी।कान्हा के कमर में रस्सी डाली तो कन्हैया की कमर तथा ओखल के बीच दो अँगुल रस्सी छोटी पड़ गई।मैया की सारी कोशिष ,कान्हा को बाँधने की ब्यर्थ हो गई।मैया हार कर रस्सी रख कर बैठ गई , फिर क्या था, कान्हा स्वयं ओखल से बँध गये।इसलिये कान्हा का एक नाम दामोदर है ।सदगुरू ने कहा है जब मन वाणी और कर्म हरि के लिए समर्पित होता है,तो हरि स्वयं भक्त के यहाँ बँधे चले आते हैं।

"मोहन की लीला मधुर, भक्तन हितकारी।
बँध गये ऊखल संग , गोबर्धन गिरिधारी ।।"

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