राधे रहुँ नित तुम्हें पुकारी
मेरो चित्त चहुँदिसी खोजत ज्यों पपिहा डारी डारी
परम प्रेम सों सींची क्यारी नित अंसुवन जल ढारी।
पँच इन्द्रियाँ बन वनचर चरन चहत फुलवारी।॥
तुम हो करुणा कि सागर बचा लो बाँह पसारी।॥।
रो रो कर नैनाश्रु भी सूखे सूखे न प्रेम फुलवारी॥
निज प्रेम रस वर्षण कर सींच दो क्यारी क्यारी॥।
देहु दर्शन अब' करो मति पड़ा हूँ शरण तिहारी ॥
मेरो चित्त चहुँदिसी खोजत ज्यों पपिहा डारी डारी
परम प्रेम सों सींची क्यारी नित अंसुवन जल ढारी।
पँच इन्द्रियाँ बन वनचर चरन चहत फुलवारी।॥
तुम हो करुणा कि सागर बचा लो बाँह पसारी।॥।
रो रो कर नैनाश्रु भी सूखे सूखे न प्रेम फुलवारी॥
निज प्रेम रस वर्षण कर सींच दो क्यारी क्यारी॥।
देहु दर्शन अब' करो मति पड़ा हूँ शरण तिहारी ॥
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