Wednesday 28 October 2015

"श्री कृष्ण कुण्ड"







("श्री कृष्ण कुण्ड")
श्री कृष्ण ने अरिष्टासुर का वध कर दिया है"
- यह सुनकर श्री राधा एवम ललितादि सखियाँ आपस मेंकहने लगीं-"कि देखो, ब्रजराज के पुत्र इस श्री कृष्ण ने गौ की हत्या कर दी है और राजा द्वारा किया
हुआ पाप प्रजा को भोगना पड़ता है"-इस न्याय के
अनुसार हम सब को भी यह पाप लगेगा.

श्रीकृष्ण के भी कानो में यह बात पड जाए, इसलिए
वे सब ऐसा कहती हुईं कृष्ण के पास पहुँच उनसे कहने लगीं-
हे वृषघाती ! आज हमें मत छुओ.

श्री कृष्णबोले--अरी मूर्ख गोपियों ! यह तो बैल के रूप में सारे
ब्रज को दुःख देने वाला असुर था.

गोपियाँ बोली - हे कृष्ण ! चाहे वह असुर ही था
किन्तु था तो वह बैल के रूप में ही. वृत्रासुर की हत्या
से ब्रह्मण होने के कारण इंद्र को भी तो ब्रह्म हत्या
का पाप लगा था अब वैसा ही पाप क्या तुम्हे नहीं
लगेगा ?

तब कृष्ण निरुत्तर हो गए एवं मलिन मुख हो कातर
वाणी से प्रार्थना करने लगे - हे गोपियों ! अब
इसका उपाय क्या है ?

तब श्री राधा सखियों
सहित कहने लगीं - हमने पूर्णमासी. गार्गी आदि के
मुख से जैसा सुना है. श्रुति स्मृति प्रमाणित उसी
प्रायश्चित को ही तुम करो अर्थात त्रिभुवन में
जितने भी तीर्थ हैं. उन सब तीर्थों में स्नान करने से
ही तुम इस महापाप से मुक्त हो सकते हो.

तब श्री कृष्ण विनीत भाव को छोड़ कर गर्व पूर्वक
कहने लगे - मैं क्या अब त्रिभुवन में पर्यटन करने
जाऊँ ? तुम देखो तो सही. मैं अभी यहाँ ही सभी
तीर्थों को बुलाकर उनमे स्नान करता हूँ. ऐसा कहकर
झट उन्होंने भूमि पार पैर की एडी से ठोकर
मारी.ज्योंही श्री कृष्ण ने ठोकर मारी. पाताल से
तत्क्षण ही भोगवती का जल निकल आया. उसे देख

श्री कृष्ण ने कहा - आइये आइये हे तीर्थ समूह आइये.तब वहीँ समस्त तीर्थों का जल उस जल में आ
सम्मलित हुआ.

तब श्री कृष्ण गोपियों से कहने लगे - अरी निर्बुद्धि
गोप वधुओ ! तुम सब इन समस्त तीर्थों का दर्शन करो.

श्री कृष्ण के इन वचनों को सुनकर गोपियाँ बोलीं -
हे कृष्ण तुम्हारी बातों का हम कभी विश्वास नहीं
कर सकतीं. तब वहाँ उपस्थित सभी तीर्थ मूर्ति रूप
धारण कर हाथ जोड़कर अपना अपना परिचय देते हुएइस प्रकार कहने लगे

- मैं लवण समुद्र हूँ. मैं क्षीर सागर हूँ. मैं सुर्दीर्घिका हूँ .मैं शौण. मैं सिन्धु हूँ. मैं
ताम्रपर्णी हूँ. मैं पुष्कर हूँ. मैं सरस्वती हूँ. मैं गोदावरी
हूँ. मैं यमुना हूँ. मैं सरयू हूँ. मैं प्रयाग हूँ. मैं रेवा हूँ. हम
सबों के इस जल समूह हो देखकर आप विश्वास
कीजिये. तब श्री कृष्ण ने उस जल में स्नान किया एवं
अति गर्वपूर्वक कहने लगे - यह सर्वतीर्थ युक्त अति
शुद्ध सरोवर अनादी अनंत समय पर्यंत नित्य
विराजमान रहे. ऐसा मैंने विधान किया है..
राधै राधै

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