श्रीवृन्दावन का मर्म बिना श्रीकिशोरीजी की कृपा और वृन्दावन वास के शब्दों
द्वारा समझना असंभव है। यह अनूभूति का शास्त्र है। अश्रुपूरित नयन, करुण
कंठ और प्रेम विहवल ह्रदय द्वारा ही श्रीकिशोरीजी की कृपा से इसका ज्ञान
प्राप्त हो सकता है। जय जय श्री राधे !
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